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सिविल कानून

उम्मीदवारों द्वारा संपत्ति का प्रकटीकरण न करना भ्रष्ट आचरण माना जाएगा

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 11-Aug-2023

आबिदा बेगम बनाम मोहम्मद इस्माइल और अन्य।

उम्मीदवार द्वारा अपनी स्वयं, अपने पति या पत्नी या आश्रितों की संपत्ति का प्रकटीकरण न करना या संपत्ति छिपाना एक भ्रष्ट आचरण माना जायेगा है और यह अयोग्यता का आधार बन सकता है।

 (कर्नाटक उच्च न्यायालय)

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

आबिदा बेगम बनाम मोहम्मद इस्माइल और अन्य के प्रकरण/वाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि किसी उम्मीदवार द्वारा अपनी, अपने पति या पत्नी या आश्रितों की संपत्ति का प्रकटीकरण करने में विफल होना या संपत्ति छिपाना एक भ्रष्ट आचरण माना जायेगा।

पृष्ठभूमि

  • उच्च न्यायालय में वर्तमान प्रकरण/वाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत आबिदा बेगम द्वारा दायर की गई एक रिट याचिका से संबंधित है, जिसमें वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC), शाहपुर (ट्रायल कोर्ट) के निर्णय को रद्द करने की याचिका की गई है।
  • मूल याचिका मोहम्मद इस्माइल द्वारा ट्रायल कोर्ट में दायर की गई थी, जिसमें आबिदा बेगम के चुनाव को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि वह अपनी और अपने पति की संपत्ति का खुलासा करने में विफल रही थीं।
  • आगे यह तर्क दिया गया कि उक्त मामला कर्नाटक ग्राम स्वराज और पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 19(1)(B) के संदर्भ में आबिदा बेगम द्वारा किया गया भ्रष्ट आचरण होगा।
  • ट्रायल कोर्ट ने ग्राम पंचायत के लिये उम्मीदवार आबिदा बेगम की उम्मीदवारी को रद्द कर दिया था।
  • इसलिये आबिदा बेगम ने उच्च न्यायालय में अपील की और तर्क दिया कि मोहम्मद इस्माइल सभी उम्मीदवारों को मिलाकर एक दल बनाने में विफल रहे इसलिये ट्रायल कोर्ट को याचिका खारिज़ कर देनी चाहिये।
  • उच्च न्यायालय ने बेगम के इस तर्क से सहमति व्यक्त की कि कर्नाटक ग्राम स्वराज और पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 15(2)(A) के तहत सभी चुनावी उम्मीदवारों का दल बनाया जाना चाहिये था।
  • उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को चुनाव याचिका को शुरुआत में ही खारिज़ कर देना चाहिये था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)

न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की पीठ ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं :

  • संपत्ति का प्रकटीकरण न करने पर उम्मीदवार को कर्नाटक ग्राम स्वराज और पंचायत राज अधिनियम, 1993 के तहत पंचायत चुनाव में भाग लेने से अयोग्य ठहराया जा सकता है।
  • ऐसी जानकारी को छिपाना अपने आप में अयोग्यता को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त है और यह साबित करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि इस तरह की जानकारी को छिपाने से दूसरे उम्मीदवार की चुनाव संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

रिट याचिका (Writ Petition)

  • रिट याचिका (WP) तब दायर की जाती है जब राज्य या किसी व्यक्ति द्वारा किसी के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है (केवल बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका के मामले में)।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा रिट जारी की जा सकती है।
  • उपर्युक्त न्यायालयों द्वारा जारी किये जाने वाले पाँच प्रकार की रिट निम्नलिखित हैं:
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) – सशरीर प्रस्तुत होना।
    • परमादेश (Mandamus) - आदेश देना।
    • निषेधाज्ञा (Prohibition) - निचली अदालतों, न्यायाधिकरणों और अन्य अर्द्ध-न्यायिक अधिकारियों को उनके अधिकार से परे कुछ करने से रोकने के लिये एक न्यायालय द्वारा जारी की जाती है।
    • उत्प्रेषण (Certiorari) - ऐसी रिट या आदेश जिसके द्वारा उच्च न्यायालय निचली न्यायालय में सुनवाई किये गये मामले की समीक्षा करता है।
    • अधिकार-पृच्छा (Quo-Warranto) - किस अधिकार से

निर्णय विधि (Case Law)

लोक प्रहरी के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने महासचिव एस. एन. शुक्ला बनाम भारत संघ और अन्य (2018) के माध्यम से निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:

  • चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये इसे अनिवार्य कर दिया गया था कि नामांकन के समय वे अपनी स्वयं की, अपने जीवनसाथी और आश्रितों की संपत्ति और आय के स्रोत की घोषणा करेंगे।
  • किसी उम्मीदवार का अपनी संपत्ति और आय के स्रोत दोनों का खुलासा करने का दायित्व संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत नागरिकों के जानने के मूल अधिकार का एक हिस्सा है।

विधायी प्रावधान

भारत का संविधान, 1950

अनुच्छेद 226 - कतिपय रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति. —

Article 226 - Power of High Courts to issue certain writs. —

  • अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये और किसी अन्य प्रयोजन के लिये उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई निकालने की शक्ति होगी।

कर्नाटक ग्राम स्वराज और पंचायत राज अधिनियम, 1993

Karnataka Gram Swaraj and Panchayat Raj Act, 1993

  • धारा 15 - चुनाव याचिका -

(2) एक याचिकाकर्त्ता अपनी याचिका में प्रतिवादी के रूप में शामिल होगा -

(a) जहाँ याचिकाकर्त्ता, ऐसी घोषणा, कि सभी या किसी भी जीते हुए उम्मीदवारों का चुनाव शून्य है, करने के अलावा एक और घोषणा का दावा करता है कि उसे स्वयं या किसी अन्य उम्मीदवार को छोड़कर अन्य सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को विधिवत निर्वाचित किया गया है और जहाँ ऐसी कोई और घोषणा का दावा नहीं किया गया है।

  • धारा 19 - चुनाव को शून्य घोषित करने का आधार -

(1) उपधारा (2) के प्रावधानों के अधीन यदि नामित न्यायालय की राय है -

(b) किसी निर्वाचित उम्मीदवार या उसके एजेंट या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी निर्वाचित उम्मीदवार या उसके एजेंट की सहमति से कोई भ्रष्ट आचरण किया गया है।